अक्स बिका यहाँ, शख्स बिका यहाँ,
तन भी बिका यहाँ मन भी बिका है,
जब कुछ ना रहा यहाँ बिकने को ,
अब रंग यहाँ पर बिकते है/
आईने ने उस अक्स को बेचा,
जो उसकी परछाई था,
संगीत ने उस साज़ को बेचा,
जो उसकी शहनाई था,
इक-इक कर सब बिकने लगा यहाँ,
जीवन का पहिया यूँ रुकने लगा यहाँ,
जब कुछ ना रहा यहाँ बिकने को ,
अब रंग यहाँ पर बिकते है/
कलम ने उस श्याही को बेचा,
जो उसकी तकदीर थी,
मौसम में उस सावन को बेचा,
जो उसकी तस्वीर थी,
इस जहाँ का वो सजना सवरना,
मतलब के आगे झुकने लगा यहाँ,
जब कुछ ना रहा यहाँ बिकने को ,
अब रंग यहाँ पर बिकते है/
नफरत के आगे वो चाहत बिकी,
राँझा कि जिसमे हीर थी,
अपनों के आगे वो यादें बिकी,
प्यार कि जिसमे तस्वीर थी,
जब जीवन का कोई रंग ना रहेगा तो क्या कहेंगे,
कौन यहाँ पर बिकते हैं,
जब कुछ ना रहा यहाँ बिकने को ,
अब रंग यहाँ पर बिकते है/
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